मित्र-मंडली

Monday 25 July 2011

मैं क्यों हूँ?

Silence Is Better Than Sound.


कर्तव्यों का पूर्ण निर्वहन करने के लिए.

....

लेकिन मेरा कर्तव्य क्या है? ये कैसे जानूं  क्योंकि कर्तव्य तो परिस्थितियों और समय के साथ-साथ बदलती रहती हैं, तो क्या मै

परिस्थितियों और समय के हिसाब से आये कर्तव्यों का निर्वहन करता  चला जाऊँ, पर वो तो गलत भी  हो सकता है. मै इसका चयन कैसे करूँ की यह गलत है या सही ?

इसके लिए मुझे अपने अंदर आत्म ज्ञान लाना होगा. पर आत्म ज्ञान तो अन्तर्मुखी होने से ही आ सकता है.

इसके लिए तो मुझे स्वामी विवेकानंद जी द्वारा व्याखित पातंजलि जी के  योग सूक्तियों का सहारा लेना होगा.

पर वो तो आठ हैं.

(यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि)

स्वामी विवेकानंद जी ने कहा है शुरू के चार कर लेने से हमारा चरित्र निर्माण होता है और कर्तव्य का ज्ञान भी हो जाता है.

 तो चलो फिर शुरू के चार कर के देख लेता हूँ ...

 अरे... इसे करने से तो 'मै क्यों हूँ ?' इसका अहसास सा होने लगा है और शायद ऐसा करने से स्वामी विवेकानंद जी के अनुसार मेरे होने का संज्ञान भी हो जायेगा.


 स्वामी विवेकानंद जी आपने 'राजयोग' लिख के हम लोगो के ऊपर बहुत बड़ा उपकार किया है. 







Saturday 23 July 2011

मैं कौन हूँ?



मैं कौन हूँ ?

मैं हर नजर का एक नजरिया हूँ.
...
यदि खुद अपने आप से पूंछू?

तो शायद उम्मीद का एक दरिया हूँ...