मित्र-मंडली

Thursday 17 January 2013

औरत - जरुरत है आंतरिक बल देने की.






हमारे समाज और देश में औरतों के प्रति बढ़ते अत्याचारों में महज बलात्कार का नाम ही नही लिया जाना चाहिए क्योंकि यह उपरी सतह का कौतुहल मात्र  है. कारण इसके गर्त में छिपा अनदेखा रह गया है. अत्याचार उन्ही के साथ होता है जो कमजोर है. कभी शेर का मांस खाते किसी को नही सुना होगा. यदि आज हमारे देश में कोई कमजोर है तो वह SC, ST , OBC  इत्यादि न होकर बल्की स्त्री है.
हमे जरूरत है इन्हे आंतरिक बल देने की ये खुद ब खुद सशक्त होती जाएँगी.
जिस तरीके से IS एक्ट - 1925 बेटियों को पुस्तैनी जायजाद में हक प्रदान करता है, उसी तरीके से शादी के बाद पति द्वारा किये गये किसी भी व्यवसाय, उपार्जित किये गये धन में आधा अधिकार पत्नी का बिना शर्त होना चाहिए भले ही वह संपत्ति केवल पति के नाम पर ही क्यों न हो, इस तरह इन्हें बल प्रदान करना होगा जिससे हर क्षेत्र में महिला सशक्त होती जाएँ और जो प्रताड़ना उनके साथ अनुवांशिक होता चला आया है उसका अंत हो. इस तरह बलात्कार ही नही बल्कि हर अत्याचार से लड़ने और बचने का बल स्त्री जाति को प्राप्त होगा और उनके प्रति होते अत्याचार का भी खात्मा होगा. 

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