मित्र-मंडली

Friday 27 May 2016

पूर्वाग्रह से बना मेरा मैंपन...


आज शायद मुझे मेरापन रोक दे मुझे लिखने के लिए फिर भी मैं अपने मैं को दबाकर लिखने का प्रयास करूँगा... हर व्यक्ति पूर्वाग्रह से ग्रसित है, यदि नही तो मैं तो जरूर...
जो कई बार धर्मान्धता का रूप लेता है, कहीं कट्टरता का तो कहीं अहम का... वास्तव में न कोई गलत है न सही... सब अपने-अपने पूर्वाग्रह के पैमाने पर जीते एक बादशाह के सिपाही, जिसमे बादशाह होने का गुरुर होता है। ये बात आज मेरे मन में यूं ही कौंध गयी, चन्द दिनों पहले की गयी गोआ यात्रा के बारे में सोच रहा था, एक दिन यूं ही मेरे बड़े भाई श्रीश से मेरी कहासुनी हुयी, मैं कुछ ज्यादा ही पूर्वाग्रह से पीड़ित होने के नाते बातूनी होने के साथ-साथ तंज कसने में भी लगा था, खुद की आधारहीन बातों को भी दृढ़ता से रख रहा था, ऐसा ही वाक्या एकदिन बड़े भाई पियूष के साथ भी कर बैठा, अच्छा इतना ही था की उसदिन मैं अपने मैं को मारकर स्थिती को सम्भालने में कामयाब रहा। पर इन अनुभवों से एक बात बारबार मेरे मन में कौंध रही है की किस तरह ये पूर्वाग्रह हमें अपनों से दूर करने में उत्प्रेरक का काम करती है, चाहे ये दूरी परिवार में हो रही हो, जाति में हो, धर्म के बीच हो रही हो या फिर मानवता के बीच। मुझे ऐसा लगता है यदि हम इस पूर्वाग्रह से बचें तो शायद हमारे बीच कभी दूरियां न हों।
(यह लेख शायद मैंपन से ही ओतप्रोत हो इसे अहमियत स्वेक्षानुसार ही दें)

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