मित्र-मंडली

Sunday 30 June 2013

श्रद्धांजली।


... परमात्मा उत्तराखंड में दिवंगत हुए जन,जवान और जानवरों की आत्मा को शांति दें... 
चार धाम में आई तेज बरसात की धार से भारी तबाही का मंजर हमसब ने देखा. इसके साथ हुए नुकसान को शादियों तक न तो भुला जा सकता है और न ही भरपाई की  जा सकती है. 
जिस गंगा को राजा सागर के ६०,००० पुत्रों के उद्धार ( जो की कपिल मुनि के श्राप के कोप से मारे गये थे) के लिए राजा सागर के ही पुत्र भागीरथी ने कठोर तपस्या से मां गंगा के रौद्र रूप को मृत्यु लोक में लाने में सफल रहे थे, भागीरथी को पुनः तपस्या कर भगवान शिव (महाकाल) को भी खुश करना पड़ा तब भोले नाथ ने गंगा के रौद्र रूप को अपने जटाओं में समाहित कर उनको नियंत्रित धाराओं में प्रवाहित किया तब जा कर भागीरथी अपने ६०००० भाइयों के अस्थियों को गंगा में प्रवाहित कर उनकी आत्मा को कपिल मुनि के कोप से शांति दिलायी. 
आज जब हम भोले नाथ की नगरी चारधाम(गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्रीनाथ, केदारनाथ) में उधम के पराकाष्ठ को पार कर गये तो भोले नाथ ने अपने जटाओं को थोडा ढील देकर उनसे निकली तीन धाराओं (भागीरथी, अलखनंदा और मन्दाकिनी) को तेज कर उत्तराखंड में उसके इतिहास की सबसे बड़ी तबाही का मंजर दिखा दिया, इनसब के बीच भोलेनाथ(केदार नाथ) ने अपने अस्तित्व को आंच आये बिना हम यांत्रिक और आधुनिक कहे जाने वाले घमंडी पुरषों को अपने पुरषार्थ की झलक मात्र दिखा कर हमारी झूठी ऊँची गर्व की छवि को निस्तनाबूत कर दिया.
यह गंगा द्वारा लायी गयी तबाही नही अपितु महाकाल का ही रौद्र रूप था जो अपने जाटवों में बसाये रौद्र रुपी देवी को महज थोड़ी ढील दी थी. 
जून २०११, में ही स्वामी निगमानंद ११५ दिनों के व्रत के बाद अपने शारीर को त्याग दिए थे और यह मंजर ठीक दो साल बाद जून २०१३, में हम लोग देख रहे हैं. 
आज भोलेनाथ ने उन मुनियों की तपस्या भी कुछ हद तक सफल कर दी जो वर्षों से गंगा के श्रोत  को सुरक्षित और स्वच्छ रखने के लिए अपनी जान तक कुर्बान कर चुके हैं.
... भोलेनाथ आपने खुद अपने भक्तों को आपने गोद में सुलाया है इसलिए उनके आत्मा की शांति के लिए आपसे आग्रह करना मेरी मूर्खता ही है.
- शिशू सिंह

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