मित्र-मंडली

Friday 27 May 2016

पूर्वाग्रह से बना मेरा मैंपन...


आज शायद मुझे मेरापन रोक दे मुझे लिखने के लिए फिर भी मैं अपने मैं को दबाकर लिखने का प्रयास करूँगा... हर व्यक्ति पूर्वाग्रह से ग्रसित है, यदि नही तो मैं तो जरूर...
जो कई बार धर्मान्धता का रूप लेता है, कहीं कट्टरता का तो कहीं अहम का... वास्तव में न कोई गलत है न सही... सब अपने-अपने पूर्वाग्रह के पैमाने पर जीते एक बादशाह के सिपाही, जिसमे बादशाह होने का गुरुर होता है। ये बात आज मेरे मन में यूं ही कौंध गयी, चन्द दिनों पहले की गयी गोआ यात्रा के बारे में सोच रहा था, एक दिन यूं ही मेरे बड़े भाई श्रीश से मेरी कहासुनी हुयी, मैं कुछ ज्यादा ही पूर्वाग्रह से पीड़ित होने के नाते बातूनी होने के साथ-साथ तंज कसने में भी लगा था, खुद की आधारहीन बातों को भी दृढ़ता से रख रहा था, ऐसा ही वाक्या एकदिन बड़े भाई पियूष के साथ भी कर बैठा, अच्छा इतना ही था की उसदिन मैं अपने मैं को मारकर स्थिती को सम्भालने में कामयाब रहा। पर इन अनुभवों से एक बात बारबार मेरे मन में कौंध रही है की किस तरह ये पूर्वाग्रह हमें अपनों से दूर करने में उत्प्रेरक का काम करती है, चाहे ये दूरी परिवार में हो रही हो, जाति में हो, धर्म के बीच हो रही हो या फिर मानवता के बीच। मुझे ऐसा लगता है यदि हम इस पूर्वाग्रह से बचें तो शायद हमारे बीच कभी दूरियां न हों।
(यह लेख शायद मैंपन से ही ओतप्रोत हो इसे अहमियत स्वेक्षानुसार ही दें)

Saturday 28 November 2015

जानना कभी पाना नही होता



जानना कभी पाना नही होता, जानने और पाने में कांच और हीरे  जितना अंतर है, आज जितने भी धार्मिक प्रवचनकर्ता हम देखते हैं, ये जानने को ही पाना समझ बैठे हैं, इसीलिए बड़ी-बड़ी बातें बघारते मिलते (दिखते) हैं।
यह स्थिति बड़ी ही भ्रामक है, अतएव किसी प्रवचनकर्ता पर विश्वास करने से अच्छा खुद के सामर्थ्य से शास्त्रों का अध्ययन किया जाय, और सामर्थ्य पैदा करने के लिए शास्त्रानुसार ही कर्म करने का प्रयास करना चाहिए।
कुछ ब्रह्म ज्ञानियों द्वारा सुझाये गए शास्त्र निम्न हैं-
१. अध्यात्म रामायण
२. श्रीमद्भगवद्गीता
३. योगवाशिष्ठ

Friday 10 July 2015

दोबार जोरदार होगा...


संसार या कहें इस प्रकृति में सबकुछ चक्रवत है।  बीज के अंकुरण से लेके पौधा बनना, पेड़ बनना, फूल लगना, फल लगना और फिर बीज रूप में परिवर्तित हो जाना, इसलिए इस चक्रवाती तूफान में नफरत रुपी बीज न बोयें यही दोबारा आएगा और जिस प्रकार एक बीज अनेकों बीज का निर्माण करती  है वैसे ही एक नफरत रुपी बीज से अनेकों परिणामी नफरतों का निर्माण होगा।
इसी तथ्य को इस तरह देख सकते हैं-
आतंकी को बदले की भावना से मारने से अच्छा है उसे उसके विचारधारा के साथ मारा जाये।
वरना उसे मारना पेड़ की एक टहनी काटने के बराबर ही होगा जिस तरह टहनी को काटने पर उससे और भी अनेक कन्छे निकलते हैं उसी तरह महज आतंकी को मारना और भी कई नए आतंकी संगठनो को पैदा करने के बराबर है। 

Saturday 28 February 2015

अंशू भैया की शादी।मौज मस्ती का एक दूसरा पर्याय बन गया...



Friday 21 February 2014

हर पल का मरना ।

लोगों के मुह से कहते हुए सुना है- 'एक दिन तो मरना ही है'। पर यहाँ तो ह हर पल मरते हैं। जब शरीर को पुष्ट करने का समय होता है तब भी हम क्षय की तरफ रहते हैं। और क्षय के समय पुष्टता तो मिल नही सकती क्षय की गति को भले धीमा कर सकें पर होता कहाँ है। जिन्दा रहने का मुख्य कारक भोजन नही अपितु 'आशा' है, और आशा  विश्वास पर टिकी है।
हम किसी भी पल किसी पर विश्वास नही करते हाँ तक की भगवान पर भी स्थाई विश्वास नही है, तो आशा का अस्तित्व डगमगाता है, और जब जीने का कारक ही हर पल कमजोर बना रहता है तो हम हर पल मरते हैं।
(खुद का अनुभव...)

Monday 28 October 2013

–––एक निवेदन–––

                                                                         +++ इस पावन पर्व दीपावली पर +++



स्वीकार करेंगे अनुमोदन यह,
विश्वास हमे है सब जन पर।
इस पावन पर्व दीपावली पर।।

चीनी पटाखे और लड़ियों को,
इस बार रख देंगे पूर्णतयः ताख पर ।
इस पावन पर्व दीपावली पर ।।

चलो चलें इस बार वहाँ को।
उन  टेढ़े - मेढ़े रास्तों पर,
इस पावन पर्व दीपावली पर।।

धागे  से  जहाँ  काट  रहा  हो,
दियली  वह उस  चकिये पर।
इस पावन पर्व दीपावली पर।।

बल  दें हम उन हाथों को,
हैं हम बैठे जिनके कन्धों पर।
इस पावन पर्व दीपावली पर।।

जगमग कर दें सारे जहां को,
जला के घी की बाती रखी जो हो दियली पर।
इस पावन पर्व दीपावली पर।।

रोकें प्रदूषण, बचाएं वातावरण को,
हैं हम जीवित जिसके अनुशासन पर।
इस पावन पर्व दीपावली पर।।

अग्रिम बधाई सपरिवार आपको,
शिशू सिंह के इस ब्लॉग पर।
इस पावन पर्व दीपावली पर।।

Sunday 13 October 2013

मैं एक शैतान हूँ।

ज्ञान का अभाव हूँ।
अज्ञान का सरताज हूँ।।
इसलिए मई एक शैतान हूँ।।।

अनजाने पथ पर लापता हूँ।
हर नियम से बेपरवाह हूँ।।
हाँ इसलिए मई एक शैतान हूँ।।।

आधे भरे घड़े का छलकता जल हूँ।
भावनाओं के बहते पानी का एक झलक हूँ।।
और कम क्या बोलूँ इसलिए मैं एक शैतान हूँ।।।

सब कुछ कर जाने के सपने का एक तिलस्म हूँ।
कर जाने के बाद पश्तावे का एक मिशन हूँ।।
हाँ इसलिए मैं एक शैतान हूँ।।।

खुद में बैठे इस शैतान से खुद का कर रहा सर्वनाश हूँ।
हे भगवन! इस विजय दशमी इस शैतान का नाश हो...
कम से कम यह शैतान मरने से पहले कह तो सके हाँ मैं भी एक इंसान हूँ।