संसार या कहें इस प्रकृति में सबकुछ चक्रवत है। बीज के अंकुरण से लेके पौधा बनना, पेड़ बनना, फूल लगना, फल लगना और फिर बीज रूप में परिवर्तित हो जाना, इसलिए इस चक्रवाती तूफान में नफरत रुपी बीज न बोयें यही दोबारा आएगा और जिस प्रकार एक बीज अनेकों बीज का निर्माण करती है वैसे ही एक नफरत रुपी बीज से अनेकों परिणामी नफरतों का निर्माण होगा।
इसी तथ्य को इस तरह देख सकते हैं-
आतंकी को बदले की भावना से मारने से अच्छा है उसे उसके विचारधारा के साथ मारा जाये।
वरना उसे मारना पेड़ की एक टहनी काटने के बराबर ही होगा जिस तरह टहनी को काटने पर उससे और भी अनेक कन्छे निकलते हैं उसी तरह महज आतंकी को मारना और भी कई नए आतंकी संगठनो को पैदा करने के बराबर है।