हमारे समाज और देश में औरतों के प्रति बढ़ते अत्याचारों में महज बलात्कार का नाम ही नही लिया जाना चाहिए क्योंकि यह उपरी सतह का कौतुहल मात्र है. कारण इसके गर्त में छिपा अनदेखा रह गया है. अत्याचार उन्ही के साथ होता है जो कमजोर है. कभी शेर का मांस खाते किसी को नही सुना होगा. यदि आज हमारे देश में कोई कमजोर है तो वह SC, ST , OBC इत्यादि न होकर बल्की स्त्री है.
हमे जरूरत है इन्हे आंतरिक बल देने की ये खुद ब खुद सशक्त होती जाएँगी.
जिस तरीके से IS एक्ट - 1925 बेटियों को पुस्तैनी जायजाद में हक प्रदान करता है, उसी तरीके से शादी के बाद पति द्वारा किये गये किसी भी व्यवसाय, उपार्जित किये गये धन में आधा अधिकार पत्नी का बिना शर्त होना चाहिए भले ही वह संपत्ति केवल पति के नाम पर ही क्यों न हो, इस तरह इन्हें बल प्रदान करना होगा जिससे हर क्षेत्र में महिला सशक्त होती जाएँ और जो प्रताड़ना उनके साथ अनुवांशिक होता चला आया है उसका अंत हो. इस तरह बलात्कार ही नही बल्कि हर अत्याचार से लड़ने और बचने का बल स्त्री जाति को प्राप्त होगा और उनके प्रति होते अत्याचार का भी खात्मा होगा.
बलात्कार की मूलधारणा.
बलात्कार होने का मूल कारण क्या है?
बलात्कार होने का मूल कारण यह कभी नही हो सकता की नारी का पहनावा अमुख तरीके से था इस कारण यह घटना घटी. बल्कि यह बलात्कारी के मन में चलती लगातार सोच और उसकी मनोदसा का प्रत्याक्षीकरण है.
जो लोग यह कहते हैं की अमुख पहनावे से कर्ता की कामवासना इस स्तर पर पहुँच जाती है की वह बलात्कार कर बैठता है. यह बिलकुल गलत और आधारहीन है. क्योंकि यदि ऐसा होता तो कभी ५५ या ६० साल की माँओं के साथ यह कृत्य न घटित होता.
यदि कोई फूल बहुत ही जादा सुन्दर और खुसबू युक्त है और कोई उसे तोड़ कर मसल डालें और गलती भी फूल की बताई जाय तो यह कैसे न्याय संगत युक्ति हो सकती है.
अतएव बलात्कार, बलात्कारी के मन में चलती लगातार चिंतन का ही रूप है.
सही कहा गया है 'जैसा खावे अन्न वैसा होवे मन' आजकल हमारी खानपान की शैली बदलती जा रही है साथ ही साथ हमारी सोच भी बदलती जा रही है. यह सब महज भावी समाज के लिए ही अहितकर न होकर बल्कि हमारी पीढ़ियों के लिए भी हानिकारक है, क्योंकि हम अपने आवर्ती सोच और कृत्यों द्वारा अपना चरित्र परिवर्तित करते जा रहे हैं, और न चाहते हुए भी यही हम अपने बच्चों में भी incode करते जा रहे हैं.
मेरे ज्येष्ठ भाई श्रीश और प्रभात जी पूना दर्शन हेतु २५ दिसम्बर को यहाँ पधारे हमलोग आपस में बातों के माध्यम से एक दूसरे के मनोरंजन का कारण बने साथ ही साथ सबकी वर्तमान मानस पुष्टता जानने का अवसर प्राप्त हुआ.
इस श्रेणी में मैंने अपना नाम बिलकुल नीचे ही पाया. इस बात से आंतरिक प्रशन्नता हुई की अभी मेरे पास सीखने का वक़्त है.
भाइयों द्वारा सुझाव भी प्राप्त हुआ जो एक सदमार्गदर्शन का रूप लेगा ऐसा आशा करता हूँ, भाई प्रभात द्वारा भेंट स्वरुप गाँधी जी का जीवनी प्राप्त हुआ. पढ़कर गांधी जी को नजदीक से जानने का मौका मिला उनके बारे में और भी जानने की उत्कट जिज्ञासा भी हो रही है. भाई प्रभात की हाजिर जवाबी और लोगो के साथ आत्मीयता बनाने की अद्भुत कला ने कई विषम परिश्थितियों को भी दिल्लगीपूर्ण बना दिया.
भाई मयंक का आशावादी व्यक्तित्व हम सबपर आशावाद का अच्छा रंग चडाया, डब्लू (दिलीप) भैयाके उन्मुक्त विचारो ने वर्तमान जीवन शैली में रहने योग्य शिक्षा का बोध कराया, जिस कारण ये पूरी भ्रमण के दौरान केंद्र बिंदु रहे.
भ्राता श्रीश के योजनाबद्ध तरीके के चलते हमे यात्रा के मूल और नए आयामों से देखने का अवसर प्राप्त हुआ. साथ ही साथ उनके कई योजनाओ में योगदान न दे पाने का खेद भी रहा.
पूरे तरीके से यात्रा यादगार रही, अपलोगो ने मिलकर ऐसे बसंती वातावरण का समावेश मेरे अन्दर किया है जिसके लिए 'आभार' शब्द छोटा पड़ रहा है.
आपका अनुज.
शिशू