मित्र-मंडली

Monday 28 October 2013

–––एक निवेदन–––

                                                                         +++ इस पावन पर्व दीपावली पर +++



स्वीकार करेंगे अनुमोदन यह,
विश्वास हमे है सब जन पर।
इस पावन पर्व दीपावली पर।।

चीनी पटाखे और लड़ियों को,
इस बार रख देंगे पूर्णतयः ताख पर ।
इस पावन पर्व दीपावली पर ।।

चलो चलें इस बार वहाँ को।
उन  टेढ़े - मेढ़े रास्तों पर,
इस पावन पर्व दीपावली पर।।

धागे  से  जहाँ  काट  रहा  हो,
दियली  वह उस  चकिये पर।
इस पावन पर्व दीपावली पर।।

बल  दें हम उन हाथों को,
हैं हम बैठे जिनके कन्धों पर।
इस पावन पर्व दीपावली पर।।

जगमग कर दें सारे जहां को,
जला के घी की बाती रखी जो हो दियली पर।
इस पावन पर्व दीपावली पर।।

रोकें प्रदूषण, बचाएं वातावरण को,
हैं हम जीवित जिसके अनुशासन पर।
इस पावन पर्व दीपावली पर।।

अग्रिम बधाई सपरिवार आपको,
शिशू सिंह के इस ब्लॉग पर।
इस पावन पर्व दीपावली पर।।

Sunday 13 October 2013

मैं एक शैतान हूँ।

ज्ञान का अभाव हूँ।
अज्ञान का सरताज हूँ।।
इसलिए मई एक शैतान हूँ।।।

अनजाने पथ पर लापता हूँ।
हर नियम से बेपरवाह हूँ।।
हाँ इसलिए मई एक शैतान हूँ।।।

आधे भरे घड़े का छलकता जल हूँ।
भावनाओं के बहते पानी का एक झलक हूँ।।
और कम क्या बोलूँ इसलिए मैं एक शैतान हूँ।।।

सब कुछ कर जाने के सपने का एक तिलस्म हूँ।
कर जाने के बाद पश्तावे का एक मिशन हूँ।।
हाँ इसलिए मैं एक शैतान हूँ।।।

खुद में बैठे इस शैतान से खुद का कर रहा सर्वनाश हूँ।
हे भगवन! इस विजय दशमी इस शैतान का नाश हो...
कम से कम यह शैतान मरने से पहले कह तो सके हाँ मैं भी एक इंसान हूँ।

Saturday 12 October 2013

श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय- 6 (श्लोक- 45, 46 & 47)


प्रयत्न पूर्वक अभ्यास करने वाला योगी तो पिछले अनेक जन्मों के संस्कारबल से
इसी जन्म में संसिद्ध होकर सम्पूर्ण पापों से रहित हो फिर तत्काल ही परमगति को
प्राप्त हो जाता है।। 45 ।।

योगी तपस्वियोंसे श्रेष्ठ है, शास्त्र ज्ञानियों से भी श्रेष्ठ माना गया है और सकाम कर्म
करनेवालों से भी योगी श्रेष्ठ है; इससे हे अर्जुन! तू योगी हो।। 46 ।।

संपूर्ण योगियों में भी जो श्रद्धावान योगी मुझमें लगे हुए अंतरात्मा से मुझको
निरंतर भजता है, वह योगी मुझे परम श्रेष्ठ मान्य है।। 47 ।।

(संसिद्ध- Established
 परमगति- परमात्मा की गति)

इस गीता जी के कथन का पालन कर पता तो शायद सक्षम होता 'संसिद्ध' और 'परमगति' के अर्थ को बतलाने में।

Monday 9 September 2013

माँ की जीवटता।

... कल  उस माँ  की जीवटता देख शक्ति सञ्चालन की एक लहर इन्द्रिय तंतुओं में दौड़ सी गयी।
उस माँ  की वो दृढ़ता थी या हठता... पर वो शक्ति की एक मूरत सी थी।
उम्र के चौथे पड़ाव में भी उसकी यह साहस देख ऐसा द्रवित हुआ... कि मन ने भी चेतन और
अवचेतन को मनो यह संदेश दे दिया हो कि माँ आपकी चरणों में नतमस्तक रहूँ सदा...

Sunday 30 June 2013

श्रद्धांजली।


... परमात्मा उत्तराखंड में दिवंगत हुए जन,जवान और जानवरों की आत्मा को शांति दें... 
चार धाम में आई तेज बरसात की धार से भारी तबाही का मंजर हमसब ने देखा. इसके साथ हुए नुकसान को शादियों तक न तो भुला जा सकता है और न ही भरपाई की  जा सकती है. 
जिस गंगा को राजा सागर के ६०,००० पुत्रों के उद्धार ( जो की कपिल मुनि के श्राप के कोप से मारे गये थे) के लिए राजा सागर के ही पुत्र भागीरथी ने कठोर तपस्या से मां गंगा के रौद्र रूप को मृत्यु लोक में लाने में सफल रहे थे, भागीरथी को पुनः तपस्या कर भगवान शिव (महाकाल) को भी खुश करना पड़ा तब भोले नाथ ने गंगा के रौद्र रूप को अपने जटाओं में समाहित कर उनको नियंत्रित धाराओं में प्रवाहित किया तब जा कर भागीरथी अपने ६०००० भाइयों के अस्थियों को गंगा में प्रवाहित कर उनकी आत्मा को कपिल मुनि के कोप से शांति दिलायी. 
आज जब हम भोले नाथ की नगरी चारधाम(गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्रीनाथ, केदारनाथ) में उधम के पराकाष्ठ को पार कर गये तो भोले नाथ ने अपने जटाओं को थोडा ढील देकर उनसे निकली तीन धाराओं (भागीरथी, अलखनंदा और मन्दाकिनी) को तेज कर उत्तराखंड में उसके इतिहास की सबसे बड़ी तबाही का मंजर दिखा दिया, इनसब के बीच भोलेनाथ(केदार नाथ) ने अपने अस्तित्व को आंच आये बिना हम यांत्रिक और आधुनिक कहे जाने वाले घमंडी पुरषों को अपने पुरषार्थ की झलक मात्र दिखा कर हमारी झूठी ऊँची गर्व की छवि को निस्तनाबूत कर दिया.
यह गंगा द्वारा लायी गयी तबाही नही अपितु महाकाल का ही रौद्र रूप था जो अपने जाटवों में बसाये रौद्र रुपी देवी को महज थोड़ी ढील दी थी. 
जून २०११, में ही स्वामी निगमानंद ११५ दिनों के व्रत के बाद अपने शारीर को त्याग दिए थे और यह मंजर ठीक दो साल बाद जून २०१३, में हम लोग देख रहे हैं. 
आज भोलेनाथ ने उन मुनियों की तपस्या भी कुछ हद तक सफल कर दी जो वर्षों से गंगा के श्रोत  को सुरक्षित और स्वच्छ रखने के लिए अपनी जान तक कुर्बान कर चुके हैं.
... भोलेनाथ आपने खुद अपने भक्तों को आपने गोद में सुलाया है इसलिए उनके आत्मा की शांति के लिए आपसे आग्रह करना मेरी मूर्खता ही है.
- शिशू सिंह

Tuesday 28 May 2013

अपनी मौलिक निशानी...


अपनी मौलिक निशानी,
घर की किसानी.
       छूट गया पानी,
       रह गयी कहानी.
है तो वो पुरानी,
पर कोई न सानी.
        चाल मस्तानी,
        करती सबकी निगरानी.
ले जा रही जवानी,
वो प्यारी सलोनी.
        होटल की बिरयानी,
        वो दाने की मौनी.
सोच तूफानी,
कर्म दीवानी.
      अपनी मौलिक निशानी,
      घर की किसानी.
-Shishu Singh


Thursday 17 January 2013

औरत - जरुरत है आंतरिक बल देने की.






हमारे समाज और देश में औरतों के प्रति बढ़ते अत्याचारों में महज बलात्कार का नाम ही नही लिया जाना चाहिए क्योंकि यह उपरी सतह का कौतुहल मात्र  है. कारण इसके गर्त में छिपा अनदेखा रह गया है. अत्याचार उन्ही के साथ होता है जो कमजोर है. कभी शेर का मांस खाते किसी को नही सुना होगा. यदि आज हमारे देश में कोई कमजोर है तो वह SC, ST , OBC  इत्यादि न होकर बल्की स्त्री है.
हमे जरूरत है इन्हे आंतरिक बल देने की ये खुद ब खुद सशक्त होती जाएँगी.
जिस तरीके से IS एक्ट - 1925 बेटियों को पुस्तैनी जायजाद में हक प्रदान करता है, उसी तरीके से शादी के बाद पति द्वारा किये गये किसी भी व्यवसाय, उपार्जित किये गये धन में आधा अधिकार पत्नी का बिना शर्त होना चाहिए भले ही वह संपत्ति केवल पति के नाम पर ही क्यों न हो, इस तरह इन्हें बल प्रदान करना होगा जिससे हर क्षेत्र में महिला सशक्त होती जाएँ और जो प्रताड़ना उनके साथ अनुवांशिक होता चला आया है उसका अंत हो. इस तरह बलात्कार ही नही बल्कि हर अत्याचार से लड़ने और बचने का बल स्त्री जाति को प्राप्त होगा और उनके प्रति होते अत्याचार का भी खात्मा होगा. 

Friday 11 January 2013

बलात्कार की मूलधारणा.



बलात्कार की मूलधारणा.
बलात्कार होने का मूल कारण क्या है?
बलात्कार होने का मूल कारण यह कभी नही हो सकता की नारी का पहनावा अमुख तरीके से था इस कारण यह घटना घटी. बल्कि यह बलात्कारी के मन में चलती लगातार सोच और उसकी मनोदसा का प्रत्याक्षीकरण है. 
जो लोग यह कहते हैं की अमुख पहनावे से कर्ता की कामवासना इस स्तर पर पहुँच जाती है की वह बलात्कार कर बैठता है. यह बिलकुल गलत और आधारहीन है. क्योंकि यदि ऐसा होता तो कभी ५५ या ६० साल की माँओं के साथ यह कृत्य न घटित होता.
 यदि कोई फूल बहुत ही जादा सुन्दर और खुसबू युक्त है और कोई उसे तोड़ कर मसल डालें और गलती भी फूल की बताई जाय तो यह कैसे न्याय संगत युक्ति हो सकती है. 
अतएव बलात्कार, बलात्कारी के मन में चलती लगातार चिंतन का ही रूप है.
सही कहा गया है 'जैसा खावे अन्न वैसा होवे मन' आजकल हमारी खानपान की शैली बदलती जा रही है साथ ही साथ हमारी सोच भी बदलती जा रही है. यह सब महज भावी समाज के लिए ही अहितकर न होकर बल्कि हमारी पीढ़ियों के लिए भी हानिकारक है, क्योंकि हम अपने आवर्ती सोच और कृत्यों द्वारा अपना चरित्र परिवर्तित करते जा रहे हैं, और न चाहते हुए भी यही हम अपने बच्चों में भी incode करते जा रहे हैं. 

पूना दर्शन



मेरे ज्येष्ठ भाई श्रीश और प्रभात जी पूना दर्शन हेतु २५ दिसम्बर को यहाँ पधारे हमलोग आपस में बातों के माध्यम से एक दूसरे के मनोरंजन का कारण बने साथ ही साथ सबकी वर्तमान मानस पुष्टता जानने का अवसर प्राप्त हुआ.
इस श्रेणी में मैंने अपना नाम बिलकुल नीचे ही पाया. इस बात से आंतरिक प्रशन्नता हुई की अभी मेरे पास सीखने का वक़्त है. 
भाइयों द्वारा सुझाव भी प्राप्त हुआ जो एक सदमार्गदर्शन का रूप लेगा ऐसा आशा करता हूँ, भाई प्रभात द्वारा भेंट स्वरुप गाँधी जी का जीवनी प्राप्त हुआ. पढ़कर गांधी जी को नजदीक से जानने का मौका मिला उनके बारे में और भी जानने की उत्कट जिज्ञासा भी हो रही है. भाई प्रभात की हाजिर जवाबी और लोगो के साथ आत्मीयता बनाने की अद्भुत कला ने कई विषम परिश्थितियों को भी दिल्लगीपूर्ण बना दिया.
भाई मयंक का आशावादी व्यक्तित्व हम सबपर आशावाद का अच्छा रंग चडाया, डब्लू (दिलीप) भैयाके उन्मुक्त विचारो ने वर्तमान जीवन शैली में रहने योग्य शिक्षा का बोध कराया, जिस कारण ये पूरी भ्रमण के दौरान केंद्र बिंदु रहे.
भ्राता श्रीश के योजनाबद्ध तरीके के चलते हमे यात्रा के मूल और नए आयामों से देखने का अवसर प्राप्त हुआ. साथ ही साथ उनके कई योजनाओ में योगदान न दे पाने का खेद भी रहा.  
पूरे तरीके से यात्रा यादगार रही, अपलोगो ने मिलकर ऐसे बसंती वातावरण का समावेश मेरे अन्दर किया है जिसके लिए 'आभार' शब्द छोटा पड़ रहा है.

आपका अनुज.
शिशू