मित्र-मंडली

Saturday 29 December 2012


दरिंदगी की पराकाष्ठ दिल्ली में...

ई दहिजरा के पूतों ने हरमपना करके पूरे देश की जनतन का जीना हराम कर दिया है, सब्जी बेचने वाला ठेला लेके निकलता है तो ओका बाहर निकलते ही आन्दोलन याद आ जाता है.सब आपन काम धंधा छोड़ के नारा लगाने, लाठी और फोब्बारा खाने इण्डिया गेटवा पे पहुंच जा रहे हैं.अरे! ई जालिम हमही सब मेसे आये हैं, सरकरवा समझत कहे नाही.इन ससुरन को हमही लोगन के बीच में छोड़ दे हमसब बहुत समझदार हैं काट-पीट के आपस में बाँट लेंगे.झूठे कसबवा की नाई सम्मय रुपया इन कुत्त्वन पे खरचेंगे. सरकार का हम सबकै खुला चेतावनी बा इन्हेंन का फांसी दा, नहीं तो तुरंत हमसबन के हवाले करा.

भोले बाबा उस बच्ची की आत्मा को शांति दें.. 

Tuesday 11 December 2012

About Me




दिन सोमवार का था दोपहर के १:५३ हो रहे थे. खडवा गाँव के किरस्तानी Hospital में पहली बार रोने की गुस्ताखी की थी.
मुझे पता नही था की उस गुस्ताखी की सजा ये होगी की स्कूली सीढियां चढ़ के बड़े कालेजों की चकाचौंध देख, पेट को भरने के लिए रोटियां Multinational Company या National कंपनियों के तवे  पे सेंकनी होंगी.
चलिए इस साहित्यिक तोड़-मरोड़ से बहार निकल कर अपने कुछ आमोखास को बताने की कोशिस करता हूँ .  
कहीं पहुंचा तो नही हूँ पर जहां भी खड़ा हूँ इसमें सभी लोगो का प्यार और दुलार है जिसमे सबसे ऊपर मेरी अम्मा (श्रीमती  भानुमती सिंह), बाबु जी (स्व. श्री केदारनाथ सिंह) बड़े चाचा और चाची (श्री सुरेश चन्द्र सिंह और श्रीमती ममता सिंह), राम चाचा और चाची(श्री मनोज कुमार सिंह और श्रीमती डाली सिंह) श्याम चाचा(स्व. श्री मनीष कुमार सिंह), भैया(शरद चन्द्र सिंह, श्रीश चन्द्र सिंह, दिलीप सिंह, पियूष सिंह), दीदी(लक्मी सिंह, दीप्ती सिंह, आरती सिंह, पल्लवी सिंह, नताशा सिंह),  छोटी बहन(रेशू सिंह, आकांक्षा सिंह), छोटे भाई(प्रवीण कुमार सिंह, प्रांजल सिंह), बुआ और फूफा(श्रीमती लीला सिंह, श्री इन्द्रजीत सिंह), भाभी(अन्नू सिंह), मौसी (सीमा, पन्नू, आशा, रीता), मित्र जानो में (विनोद, हिमांशू, गौरव कपिल, अयोद्धया, बब्बू आदि ), अजगरा चाची , छोटी चाची, तन्नू काका, अन्नू बुआ, फन्नन चाचा, पप्पू चाचा, पिंटू चाचा, अखिलेश चाचा, पन्नन चाचा, मन्नू चाचा, बाबा(श्री गुलाब सिंह) और दादी, रावन काका(श्री विश्वनाथ सिंह), बाबा(स्व. श्री महीमन सिंह), अलोक, बड़े मामा और छोटे मामा, अनिल चाचा, कलौता बुआ, हरीतिमा चाची और भी बहोत सारे लोग सबका नाम दे पाना संभव नही है.
लोगो का सहयोग इस कदर मिला है की अहसान बोझ बहुत भरी है.      

Thursday 6 December 2012


        रिश्ता
हमने चलना था सीखा 
वो उड़ने थी लगी
मै दौड़ना था सीखा 
वो चूमने गगन थी लगी
हमने हसना था सीखा 
वो चहकने थी लगी
जाने रिश्ता क्या था 
जो वो समझने थी लगी .

Sunday 25 November 2012

तरंग 'The Wave'





तरंग यानी 'Wave' जिन चीजों का हम सहजता से अनुभव करने में सक्षम हैं यानी लौकिक जगत की वस्तुएं उनमे से सबसे अत्यधिक तरंगे हमारे मस्तिष्क से निकलती हैं. छड भर में ही अनगिनत विचार धाराएं तरंग की तरह उठ कर प्रभावित हो जाती. उनमे से जो सबसे प्रखर होती है वही हमारे अंगो द्वारा क्रियान्वित हो जाती हैं.

इन तरंगो को केन्द्रियभूत करना ही 'योग' है.

अभी मैं अपने आप से यदि पूछूं की मेरा केंद्र क्या है?
और मै इन तरंगो को किधर केंद्रीयभूत कर रहा हूँ?
तो शायद  उत्तर दे पाना बहुत मुश्किल हो जायेगा. कारण यह है की जो चीजें हम अपने इन्द्रियों से ग्रहण करते हैं, ये तरंगे उसी तरफ आकर्षित हो जाती हैं. जब हम परिवार में होते हैं परिवार को संतुष्ट करने का प्रयत्न करते हैं, तो आदर्ष चरित्र प्रस्तुती, धन अर्जन जैसी आधारभूत चीजों पर ये तरंगे आकर्षित होकर विचार का एक घेरा बना देती हैं और हमारे अंग-प्रत्यंग  इसकी पूर्ती में प्रयत्नरत हो जाते हैं.

और जब यही तरंगे हमारे इन्द्रियों द्वारा किसी अन्यत्र जगह आकर्षित की जाती हैं तो हम उस तरफ मुड़ जाते हैं.

यही कारण है की हमारा किसी के प्रति आकर्षण जिसे हम प्यार का नाम दे बैठते हैं किसी एक के प्रति निश्चित नही है, बल्कि समय और दसा के साथ परिवर्तनीय है.

हमारा लक्ष्य निश्चित नही है, हमारा हमारे द्वारा ही सोचा गया निश्चित नही है तो कोई और हमारा है यह कैसे संभव हो सकता है. लक्ष्य को निश्चित किया भी नही जा सकता है.

क्या 'Steve Jobs' ने मैक बनाते वक्त सोचा रहा होगा की वह i - pod, i - pad या i - फ़ोन भी लंच करेंगे. क्या 'Bill Gates'  ने सोचा रहा होगा की वह Windows-7 या Windows - 8 तक पहुचेंगे? क्या 'Mark Zuckerberg' ने सोचा है की वह फेसबुक के साथ कहाँ तक पहुँच जायेंगे शायद जितना सोचा है उससे भी अधिक हो जाय. कुछ भी हो इनके लक्ष्य ने अपने-अपने क्षेत्र में ऊँचाईयों का परचम लह्ताते गये हैं. जो की जन-मानस के लिए बहुत की लाभकारी रहा है.
जरूरत है ऐसे ही तरंग (Wave) खुद में पैदा करने की और छोटी-छोटी झंझावातों में न पड़कर उन ऊंचाइयों को छूने की उस ऊंचाइयों के नजरानो को देखने की.
                                  बस देते जाओ इस तरंग को एक आयाम ..
                                      ..की सफलता खुद आ के बोले-
                                    ... आ जाओ तुझे बुला रहा है मेरा आवाम.
                                                                                  -Shishu Singh(15/11/2012)

Monday 6 February 2012

अब हम हिम्मत ऐ वतन को भुजाओं में बाँध के निकले हैं.


कुछ भी हो हम गोरक्षा कर दिखायेंगे.

 दूध तो हम्मै बहुत पसंद बा, आपका?

 कुछ भी हो हम गोरक्षा  कर दिखायेंगे.
सौगंध है जीना पड़े चाहे 100  या 150  साल
गोरक्षा कर दिखायेंगे.
कुछ भी हो हम गोपालन  कर दिखायेंगे.
और यदि नहीं माने ये क़ानूनी साहबजादे...
तो कोई गम नही.
क्योंकि होंगी बलिदान रोज जितनी गायें  इस भारत माँ की आँचल में
उसी आँचल की कसम गोपालन  कर उतनी ही गायें  रोज पैदा कर दिखायेंगे.
दुश्मनों का सर हम कलम कर दिखायेंगे.
और यदि आई इस शरीर को छोड़ने की नौबत
तो कोई सोच नही...
अपने ही हाथों इस सर को धड से अलग कर दिखायेंगे
कुछ भी हो हम गोरक्षा  कर दिखायेंगे.